सात सुरों की धुन पढ़ें अपनी लिपि में, SAAT SURON KI DHU Read in your own script,

Eng Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi

Sunday, October 18, 2009

झूठा सच

झूठ के नगाड़ों पर
सच के बारे में हजारों बयान
रोज आ रहे हैं खबरों में।
हमारी पीढ़ी की उम्र
इसी तरह ठगे जाने में
गुजरी है।
प्रायोजित सभाओं में
इतिहास का झुलसा चेहरा
सामने आया है बार-बार

लगातार ढलान पर फिसलते हुए
जितनी बच पायी हैं
सदी की लहूलुहान आस्थाएं,
चोटिल होती मिसालों के बुत
जितना भर साबुत बच गये हैं,
अमानत की ये बहुतेरी बानगियां
अब किसके हवाले हों,
यह सोचो।

सदी की सूखती टहनियों से
झरते रहे हैं
सब्ज बागों के जो मौसमी फूल,
उन्हें पवित्र किताबों में रख लो।
दसों दिशाओं में
जब-जब बहेगी पछुआ हवा,
चोट खाये पंजरों का दर्द
फिर-फिर जागेगा
और काहिल पुरखों से
अपना हिसाब मांगेगा।

3 comments:

M VERMA said...

जब-जब बहेगी पछुआ हवा,
चोट खाये पंजरों का दर्द
फिर-फिर जागेगा
और काहिल पुरखों से
अपना हिसाब मांगेगा।
हिसाब तो देना ही होगा हर चोट का जो हमारी काहिली ने दिये है.
बहुत गहरी रचना. अभिभूत हूँ

समयचक्र said...

झूठ के नगाड़ों पर
सच के बारे में हजारों बयान
रोज आ रहे हैं खबरों में।
हमारी पीढ़ी की उम्र
इसी तरह ठगे जाने में
गुजरी है।
बढ़िया भावपूर्ण रचना .... बधाई. दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ ....

Rajeysha said...

लगातार ढलान पर फिसलते हुए
जितनी बच पायी हैं
सदी की लहूलुहान आस्थाएं,
चोटिल होती मिसालों के बुत
जितना भर साबुत बच गये हैं,
अमानत की ये बहुतेरी बानगियां
अब किसके हवाले हों,
ये कौन सोचता ?????