सात सुरों की धुन पढ़ें अपनी लिपि में, SAAT SURON KI DHU Read in your own script,

Eng Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi

Thursday, November 26, 2009

फर्क

सागर तट पर
एक अंजुरी खारा जल पी कर
नहीं दी जा सकती सागर की परि‍भाषा,
चूंकि‍ वह सि‍र्फ जलागार नहीं होता।
इसी तरह जि‍न्दगी कोई समंदर नहीं,
गोताखोरी का नाम है
और आदमी गंगोत्री का उत्स नहीं,
अगम समुद्र होता है।
धरती कांटे उगाती है।
तेजाब आकाश से नहीं बरसता।
हरि‍याली में ही पलती है वि‍ष-बेल।
लेकि‍न मिट्टी को कोसने से पहले
अच्छी तरह सोच लो।
फूल कहां खि‍लते हैं ?
मधु कहां मि‍लता है ?
चन्दन में सांप लि‍पटे हों
तो जंगल गुनहगार कैसे हुए ?
मशीनें लाखों मीटर कपड़े बुनती हैं,
मगर य‍ह आदमी पर निर्भ‍र है
कि‍ वह सूतों के चक्रव्यूह का क्या करेगा !
मशीनें साड़ी और फंदे में
फर्क नहीं करतीं,
यह तमीज
सि‍र्फ आदमी कर सकता है।

Wednesday, November 25, 2009

शर्त

एक सच और हजार झूठ की बैसाखि‍यों पर
सि‍यार की ति‍कड़म
और गदहे के धैर्य के साथ
शायद बना जा सकता हो राजपुरूष,
आदमी कैसे बना जा सकता है।
पुस्तकालयों को दीमक की तरह चाट कर
पीठ पर लाद कर उपाधि‍यों का गट्ठर
तुम पाल सकते हो दंभ,
थोड़ा कम या बेशी काली कमाई से
बन जा सकते हो नगर सेठ।
सि‍फारि‍श या मि‍हनत के बूते
आला अफसर तक हुआ जा सकता है।
किं‍चि‍त ज्ञान और सिंचि‍‍त प्रति‍भा जोड़ कर
सांचे में ढल सकते हैं
अभि‍यंता, चिकित्सक, वकील या कलमकार।
तब भी एक अहम काम बचा रह जाता है
कि‍ आदमी गढ़ने का नुस्खा क्या हो।
साथी, आपसी सरोकार तय करते हैं
हमारी तहजीब का मि‍जाज,
कि‍ सीढ़ी-दर-सीढ़ी मि‍ली हैसि‍यत से
बड़ी है बूंद-बूंद संचि‍त संचेतना,
ताकि‍ ज्ञान, शक्ति और ऊर्जा,
धन और चातुरी
हिंसक गैंडे की खाल
या धूर्त लोमड़ी की चाल न बन जायें
चूंकि‍ आदमी होने की एक ही शर्त है
कि‍ हम दूसरों के दुख में कि‍तने शरीक हैं।