सागर तट पर
एक अंजुरी खारा जल पी कर
नहीं दी जा सकती सागर की परिभाषा,
चूंकि वह सिर्फ जलागार नहीं होता।
इसी तरह जिन्दगी कोई समंदर नहीं,
गोताखोरी का नाम है
और आदमी गंगोत्री का उत्स नहीं,
अगम समुद्र होता है।
धरती कांटे उगाती है।
तेजाब आकाश से नहीं बरसता।
हरियाली में ही पलती है विष-बेल।
लेकिन मिट्टी को कोसने से पहले
अच्छी तरह सोच लो।
फूल कहां खिलते हैं ?
मधु कहां मिलता है ?
चन्दन में सांप लिपटे हों
तो जंगल गुनहगार कैसे हुए ?
मशीनें लाखों मीटर कपड़े बुनती हैं,
मगर यह आदमी पर निर्भर है
कि वह सूतों के चक्रव्यूह का क्या करेगा !
मशीनें साड़ी और फंदे में
फर्क नहीं करतीं,
यह तमीज
सिर्फ आदमी कर सकता है।
आदिवासी कलम की धार और हिन्दी संसार
14 years ago
1 comment:
वाह !!
आपकी लेखनी बहुत दमदार है
कितनी बेहतरीन बातें आप अपनी रचना के माध्यम से कह गए
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