सात सुरों की धुन पढ़ें अपनी लिपि में, SAAT SURON KI DHU Read in your own script,

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Sunday, October 18, 2009

झूठा सच

झूठ के नगाड़ों पर
सच के बारे में हजारों बयान
रोज आ रहे हैं खबरों में।
हमारी पीढ़ी की उम्र
इसी तरह ठगे जाने में
गुजरी है।
प्रायोजित सभाओं में
इतिहास का झुलसा चेहरा
सामने आया है बार-बार

लगातार ढलान पर फिसलते हुए
जितनी बच पायी हैं
सदी की लहूलुहान आस्थाएं,
चोटिल होती मिसालों के बुत
जितना भर साबुत बच गये हैं,
अमानत की ये बहुतेरी बानगियां
अब किसके हवाले हों,
यह सोचो।

सदी की सूखती टहनियों से
झरते रहे हैं
सब्ज बागों के जो मौसमी फूल,
उन्हें पवित्र किताबों में रख लो।
दसों दिशाओं में
जब-जब बहेगी पछुआ हवा,
चोट खाये पंजरों का दर्द
फिर-फिर जागेगा
और काहिल पुरखों से
अपना हिसाब मांगेगा।

Thursday, October 15, 2009

सबसे हरा भरा-दिन

जब कोई ठूंठ बंजर दिन
घाव की तरह टीसता है,
तब उसकी टभक
ऐसे तमाम दिनों की यादें
ताज़ा कर देती है।

फिर दिनों की कतार जुड़ती जाती है,
उनकी सीढ़ियां बनने लगती हैं,
ऊसर पठार पर जंगल उग जाते हैं
और जिंदगी का हिसाब
उम्र के सफर में
बेहिसाब मुश्किल हो जाता है।

सबसे हरा-भरा दिन वह होता है
जब दर्द घाव का मुंह खोलने लगता है
और घायल आदमी
जुल्मों के खिलाफ बोलने लगता है।