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Tuesday, June 2, 2009

एक उम्दा ख्याल

कविता
एलार्म घड़ी नहीं है दोस्तो
जिसे सिरहाने रखकर तुम सो जाओ
और वह नियत वक्त पर
तुम्हें जगाया करे
तुम उसे संतरी मीनार पर रख दो
तो वह दूरबीन का काम देती रहेगी

वह सरहद की मुश्किल चौकियों तक
पहुंच जाती है रडार की तरह
तो भी मोतियाबिंद के शर्तिया इलाज
का दावा नहीं उसका।
वह बहरे कानों की दवा
नहीं बन सकती कभी।
हां, किसी चोट खायी जगह पर
दर्दनाशक लोशन की राहत
दे सकती है कभी-कभी,
और कभी सायरन की चीख़ बन
तुम्हें ख़तरों से सावधान कर सकती है

कविता उसर खेतों के लिए
हल का फाल बन सकती है,
फरिश्ते के घर जाने की खातिर
नंगे पांवों के लिए
जूते की नाल बन सकती है
समस्याओं के बीहड़ जंगल में
एक बाग़ी संताल बन सकती है
और किसी मुसीबत की घड़ी में भी
अगर तुम आदमी बने रहना चाहो
तो एक उम्दा ख्याल बन सकती है।

10 comments:

सागर नाहर said...

कविता की इससे सुन्दर परिभाषा आज तक नहीं पढ़ी, वह भी कविता के रूप में।
बहुत खूब बाबूजी।
आपका इस चिट्ठा संसार में स्वागत है।

नीरज गोस्वामी said...

और किसी मुसीबत की घड़ी में भी
अगर तुम आदमी बने रहना चाहो
तो एक उम्दा ख्याल बन सकती है।

लाजवाब रचना...कविता पर क्या कविता लिखी है...वाह...वा...इस शानदार और अद्भुत रचना के लिए बारम्बार बधाई...
आप का ब्लॉग जगत में पदार्पण हम कविता प्रेमियों पर बहुत बड़ा उपकार है...धन्यवाद...
नीरज

रंजू भाटिया said...

बेहद सुन्दर .बहुत बढ़िया लगी यह यह कविता ..अदभुत ..ब्लाग का नाम बहुत अच्छा लगा

पूजा प्रसाद said...

आपका इंट्रो पढ़ा तो लगा काफी कुछ इस ब्लॉग से मिलना अभी बाकी है...। कविता पर कविता तो बस मुखड़ा भर है।

सुंदर ब्लॉग बनाया है। धुन की परिधि, धुन के वृत्त जैसे टाइटल्स ब्लॉग को एक जुदा सा रूप दे रहे हैं।

अगली भी कविता ही पढ़ने को मिले, तो बढ़िया रहे।

श्यामल सुमन said...

Adbhut chitran. Bar bar tariph karana chahata hun.

Shyamal Suman
09955373299
www.manoramsuman.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

लाजवाब है. बेमिसाल है. ये (बहुत ही) उम्दा ख़याल..... भूलेगा नहीं ..... और न ये ब्लॉग भूलेगा .... स्वागत है आप का ..... नवाज़िये ऐसे ही !!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

सर्वप्रथम तो चिट्ठाजगत में आपका स्वागत करता हूँ......कविता की अनूठी परिभाषा तथा आम आदमी के जीवन में इसके प्रासंगिक प्रयोग का वर्णन प्रशंसनीय है.......आशा है भविष्य के गर्भ में बहुत कुछ छुपा होगा.....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

bhootnath said...

सब कुछ ऊपर लिखा जा चूका है....सब के सब मेरे साथी भी हैं.....और मज़ा यह कि जिनकी कविता मैं पढ़ रहा हूँ....उनको यह बोलते हुए भी सुना है...इस गहराई में जब उतर जाता हूँ तो कुछ भी कह पाना असंभव-सा हो जाता है...यह असंभव कार्य मैं चाह कर भी नहीं कर सकता कि इस कविता पर मैं कुछ कह पाऊं....!!

Unknown said...

dhnya hain aap
dhnya hai aapki lekhni
dhnya hai aapki kavita
_____________-dhnya hai aapke paathak______
BADHAIYAN AAPKO............