सच है
कि एक दिन
नहीं रहूंगा मैं।
शायद साबुत रह जायें
ये चंद कविताएं,
शायद बचे रह सकें
मेरे कुछ शब्द
और यात्रा के अभिलेख संजोती
यह डायरी।
प्यास के रेगिस्तानी सफर में
जिजीविषा की पुकार
वहं तुम्हें टेरती मिलेगी।
आखिरश कविता
इससे ज्यादा
कर क्या कर सकती है
किसी वजूद की हिफाजत...
आदिवासी कलम की धार और हिन्दी संसार
15 years ago




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