एक सच और हजार झूठ की बैसाखियों पर
सियार की तिकड़म
और गदहे के धैर्य के साथ
शायद बना जा सकता हो राजपुरूष,
आदमी कैसे बना जा सकता है।
पुस्तकालयों को दीमक की तरह चाट कर
पीठ पर लाद कर उपाधियों का गट्ठर
तुम पाल सकते हो दंभ,
थोड़ा कम या बेशी काली कमाई से
बन जा सकते हो नगर सेठ।
सिफारिश या मिहनत के बूते
आला अफसर तक हुआ जा सकता है।
किंचित ज्ञान और सिंचित प्रतिभा जोड़ कर
सांचे में ढल सकते हैं
अभियंता, चिकित्सक, वकील या कलमकार।
तब भी एक अहम काम बचा रह जाता है
कि आदमी गढ़ने का नुस्खा क्या हो।
साथी, आपसी सरोकार तय करते हैं
हमारी तहजीब का मिजाज,
कि सीढ़ी-दर-सीढ़ी मिली हैसियत से
बड़ी है बूंद-बूंद संचित संचेतना,
ताकि ज्ञान, शक्ति और ऊर्जा,
धन और चातुरी
हिंसक गैंडे की खाल
या धूर्त लोमड़ी की चाल न बन जायें
चूंकि आदमी होने की एक ही शर्त है
कि हम दूसरों के दुख में कितने शरीक हैं।
आदिवासी कलम की धार और हिन्दी संसार
14 years ago
2 comments:
सच कहा है आपने..आजकल बाजारों मे बिकने वाली हजारो-हजार किताबें मैनेजर-लीडर-स्क्सेसफ़ुल होना तो सिखाती है..मगर आदमी होने की रेसिपी सिखाने वाली किताबें नही आती अब..जबकि फ़ार्मुला इतना सिम्पल है..मगर फिर भी उसका अनुप्रयोग...
नमस्कार जी ,आपको अब पढ़ना सुखद है
चूंकि आदमी होने की एक ही शर्त है
कि हम दूसरों के दुख में कितने शरीक हैं।
aabhaar
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