करे ठिठोली समय भी, गर्दिश का है फेर,
यश-वर्षा की कामना, सूखे का है दौर।
महंगाई का जोर है, किल्लत की है मार,
तिस पर घी भी ना मिले, कर्ज हुआ दुश्वार।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम,
संत निठल्ले हो रहे, उन्हें न कोई काम।
नाम-दाम सब कुछ मिले जिनके नाथ महंत,
कर्म करो, फल ना चखो, कहें महागुरू संत।
हरदम चलती मसखरी, ऐसी हो दूकान,
मौन ठहाके से डरे, सदगुण से इनसान।
दस द्वारे का पींजरा, सौ द्वारे के कान,
सबसे परनिंदा भली, चापलूस मेहमान।
ऐसी बानी बोलिए जिसमें लाभ अनेक,
सच का बेड़ा गर्क हो, मस्ती में हो शोक।
आडम्बर का दौर है, सच को मिले न ठौर,
राजनीति के दावं में पाखंडी िसरमौर।
अपना हो तो सब भला, दूजे की क्या बात !
जगत रीति यह है भली दिन हो चाहे रात।
राज रोग का कहर है, आसन सुधा समान,
जिसको कोई ना तजे, उसे परम पद जान।
आदिवासी कलम की धार और हिन्दी संसार
15 years ago


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